
सिरोही(हरीश दवे)।

देंवनगरी में कथा वाचक भाई संतोष सागर जी के मुखारविंद से प्रथमेश गार्डन में चल रही भागवत कथा के दूसरे दिन प्रातः काल 9:00 बजे मुख्य यजमान महेंद्र पाल सिंह एवं नरेंद्र पाल सिंह द्वारा अन्य भक्त जनों द्वारा सर्व कल्याण हेतु पूजा अर्चना एवं विष्णु सहस्र नाम एवं लक्ष्मी यज्ञ किया गया ।
दोपहर 1:00 बजे कथा वाचक भाई संतोष सागर जी महाराज द्वारा
“कलयुग केवल नाम आधारा, सुमिर सुमीर भव उतारही पारा” की व्याख्या करते हुए निरंतर भागवत श्रवणम धारा पर विस्तार से बताया । भागवत कथा का सुनने का महत्व बताते हुए भागवत में मन लगाने से ही कल्याण हुए मीरा, नरसी मेहता, धन्ना जाट, कर्माबाई, सबरी एवं अन्य संतों का उदाहरण देते हुए भागवत रसपान का वृतांत बताए ।
सुखदेव जी महाराज 12 वर्ष तक मां के गर्भ में रहे, जहां उन्होंने निरंतर भागवत का रसपान किया और माया से मुक्त हो गए । भगवान की अहेतु की भक्ति का वर्णन करते हुए बिना स्वार्थ, बिना अपेक्षा की भक्ति ही भवसागर से पार करा देती है ।
सुखदेव जी महाराज द्वारा राजा परीक्षित को भागवत कथा का श्रवण कराया गया । पांडवो के वंशज राजा परीक्षित को भागवत की कथा सुनाते हुए पांडवों एवं भीष्म पितामह के मोक्ष का वृतांत बताया । भाई संतोष सागर ने बताया की जीवन मैं दो ही महत्व के क्षण है, एक जन्म एवं दूसरा मृत्यु । जन्म के समय हरी नाम का स्मरण किया या सुना तो जीवन संवर जायेगा और मृत्यु के समय हरी नाम स्मरण किया तो भवसागर पार हो जायेगा । अभ्यास, स्वभाव और व्यवहार ही व्यक्ति को साधु और असाधु बनाता है । विदुर, विदुरानी के कृष्ण प्रेम की कथा बताते हुए विदुर एवं ऋषि मैत्रेय के सत्संग की भी चर्चा की ।
मनुष्य की प्रवृति है जो नहीं मिला उसके लिए दुखी होता है लेकिन जो प्राप्त है उसके लिए आनंदित होना चाहिए ।
कथा में रामलाल खंडेलवाल, ओंकार सिंह उदावत, राजेंद्र सिंह राठौड़, गोविंद माली, जगदीश सिंह गुर्जर, मदन सिंह डाबी, हमीर सिंह राव, मदन सिंह परमार, विक्रम सिंह यादव, बाबूलाल प्रजापत, कारण सिंह, गीता मिस्त्री, पवन आर्य मगनलाल माली सहित कई भक्तों का सहयोग रहा ।

संपादक भावेश आर्य