आचार्य श्री अशोक सागरसूरी की निश्रा में मीरपुर में गुरुवार को होगी अंजनशलाका

भव्य वरघोडा होगा कल
सिरोही(हरीश दवे)।

9 वीं शताब्दी के अति प्राचीन जैन तीर्थ मीरपुर पाश्र्वनाथ की नगरी में श्री जैन श्वेताम्बर पाश्र्वचन्द्रसूरीश्वर धाम ट्रस्ट ने भगवान मुनिसुव्रत स्वामी का भव्य जहाजनुमा जहाज मंदिर का निर्माण करवाया है जिसकी प्राण प्रतिष्ठा 7 मार्च गुरुवार को होगी। आचार्य भगवंत श्री अशोक सागरसूरी जी म. सा. एवं मीरपुर जहाज मंदिर प्रेरिका साध्वी सुनंदिताश्रीजी की निश्रा में विधि विधान के साथ होगी।
ट्रस्ट के मत्री प्रेमचन्द्र छल्लाणी ने बताया कि यह नुतन जिनालय नागौर-निवासी श्रीमती निर्मला देवी विजयराज जी चैधरी परिवार ने अपने स्वद्रव्य से बनाया हैं। उन्होनें बताया कि मीरपुर उनके गुरूदेव श्री पार्श्ववचन्द्रसूरीजी की जन्मभूमि होने के कारण यहां उनका गुरू मंदिर भी बनाया हैं। इस भूमि पर मंदिर बनाने के लिए 2016 में भूमि खरीदी गई ओर यहा जहाजनुमा मंदिर व गुरू मंदिर बनाने का कार्य आचार्य भगवंत अशोक सागरसूरीजी, साध्वी श्री सुनंदिताश्रीजी, मौन वरिष्ठ मुनिराज श्री पुण्यरत्नचन्द्र जी एवं मुनिराज नयशेखर विजयजी म. सा. के मार्गदर्शन में यह भव्य नुतन मंदिर का निर्माण हुआ।
एक मार्च से प्रतिष्ठा का कार्यक्रम शुरू हुआ जिसमें भगवान का जन्म कल्याणक, च्यवन कल्याणक, प्रभूजी की सांजी, राज्याभिषेक कार्यक्रम विधि विधान के साथ सम्पन्न हुआ।
मंगलवार को राज्याभिषेक कार्यक्रम में पावापुरी ट्रस्ट के चेयरमेन किशोर एच. संघवी व मेनेजिंग ट्रस्टी महावीर जैन ने भाग लिया ओर आचार्य भगवंत अशोक सागरसूरीजी व अन्य साधु साध्वी भगवन्तों को वंदन कर उनका आर्शीवाद लिया। इस अवसर पर नुतन जिनालय बनाने वाले ट्रस्ट के चेयरमेन विजयराज चैधरी एवं प्रेमचंद छल्लानी ने किशोर भाई संघवी का बहुमान किया।ट्रस्ट की ओर से नूतन जिनालय बनाने वाले विजयराज चौधरी परिवार को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि इस प्राचीन तीर्थ भूमि में नूतन जिनालय बनाकर उन्होंने परमात्मा व गुरुभक्ति का एक अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया है।
गुरूवार को दीक्षा कल्याणक का भव्य वरघोडा निकलेगा ओर फिर दीक्षा विधान होगा। सुविज्ञ संगीतकार नीलेश राणावत रोजना भक्ति संगीत के साथ भक्तो को परमात्मा की भक्ति में लीन कर उत्साह बढा रहे हैं। अहमदाबाद के विधिकारक संजय भाई सोमभाई पाइपवाले प्रतिष्ठा की तमाम विधि करवा रहे हैं।
ट्रस्ट मंडल के अध्यक्ष विजयराज चैधरी ने बताया कि ट्रस्टी पदमचंद चैधरी, प्रेमचंद छल्लानी, मनोज चौधरी, श्रीमती निर्मला देवी, शिल्पा देवी, निर्मलचंद चौधरी, लाभचंद समदडिया, जयचंदलाल, संजय चौधरी, अनिल बोहरा, दिनेश चौधरी एवं लवेश चौधरी सम्पूर्ण व्यवस्था को सम्भाल कर प्रतिष्ठा महोत्सव को यादगारपूर्ण बना रहे हैं। देश के विभिन्न भागों से पधारे भक्तों की आवास व्यवस्था पावापुरी, राजेन्द्र धाम, भेरूतारक धाम एवं मीरपुर में की गई है। कोलकाता से भी अनेक धर्मप्रेमी पधार कर महोत्सव में शामिल हो रहे हैं।
अंजनशलाका के बाद 108 अभिषेक के साथ नुतन जिनालय की प्रतिष्ठा होगी। जिनालय में मुनिसुव्रत स्वामी मूलनायक होगें ओर भगवान वासुपुज्य स्वामी, आदिनाथ प्रभु, हमीरपुरा पार्श्वनाथ, चन्द्रप्रभस्वामी नेमीनाथप्रभु , सुविधिनाथ प्रभु एवं शांतिनाथप्रभु की प्रतिमा विराजित की गई। गुरूदेव श्री पार्श्वचन्द्रसूरी की गुरूमुर्ति भी स्थापित की गई हैं।
मीरपुर विहार भूमि है महावीर स्वामी की
भगवान महावीर की विहारभूमि मीरपुर में श्री वीर वंशावली के अनुसार सम्प्रति राजा ने पार्श्ववनाथ जी का जिनमंदिर बनवाया था। मीरपुर का प्राचीन नाम हमीरपुर था ओर राजस्थान की धरा पर संगमरमर का यह सबसे प्राचीन जिन मंदिर हैं। यहां पर पहले जिलापल्ली नगर था ओर यहां सवंत 821 में यह मंदिर राजा के मंत्री सांमत ने बनवाया था। हमीरपुर एक समय में जैन समाज का मुख्य सांस्कृतिक एवं व्यापार केन्द्र हुआ करता था। इस भूमि पर संवत 1576 में पार्श्ववगच्छ के संस्थापक श्री पार्श्वचन्द्रसूरीजी का जन्म हुआ था ओर उनकी स्मृति में अब यहां गुरूदेव का पार्श्वनाथ तीर्थ में हमीरपुरा पार्श्ववनाथ का नाम अंकित होने से जो भी भक्त 108 पार्श्ववनाथ दादा करते हैं। वो यहां आकर सेवा-पूजा व दर्शन का लाभ लेते हैं। ई. सं. 1904 में सेठ कल्याणजी परमानंदजी पेढी सिरोही ने नांदिया दरबार में किमत चुका कर इस मंदिर ओर धर्मशाला की व्यवस्था अपने हाथों मे ली थी ओर आज भी यही ट्रस्ट इसका संचालन करता हैं। 9 वीं शताब्दी के इस प्राचीन तीर्थ में भीडभंजन पार्श्वनाथ की प्रतिमा बहुत ही अलोकिक व प्रभावी हैं। अनेक तपस्वी यहा आराधना व तप करने आते हैं। पहाडियों के बीच बने इस तीर्थ का प्राकृतिक सौदन्र्य अनुठा हैं ओर राष्ट्रीय पक्षी मोर यहा पर बडी तादाद में हैं।


संपादक भावेश आर्य