नानी बाई के मायरे” में भक्तो ने आनंद से कथा का किया रसपान

सिरोही(हरीश दवे)।

भागवत कथा की पूर्व रात्रि 7.30 बजे से रात्रि 10 बजे तक संत भाई संतोष सागर नानी बाई के मायरे की दूसरे दिन की कथा सुनाते हुए भक्त नरसी मेहता को उनके गुरु पीपाजी की प्रेरणा से अपार धन जो मृत्यु के बाद स्वर्गलोक साथ नही जायेगा, भक्त नरसी मेहता ने अपनी धन, दौलत, संपत्ति पूरी तरह दान कर दी, जिसको दिन रात बांटते बांटते 12 महीने लगे और स्वयं को हरी भजन में लगा दिया । आगे नरसी भगत के दोहिती के मायरे का समय आया नानी बाई के ससुराल से नरसी जी की गरीबी का मजाक एवं तिरस्कार करने के लिए मायरे की लंबी सामग्री, चांदी, सोना और रुपए की सूची आई। भक्त नरसी जी ने हरी चरणों में रख कर अपनी सामर्थ्य से टूटी फूटी तैयारी शुरू की । मायरे के हरी कीर्तन में कथा पंडाल भक्ति भाव से सराबोर हो गया । आरती के बाद आराधना गुप्ता, सुनील गुप्ता, अरुणा त्रिवेदी, महेश त्रिवेदी, टीपू बाई माली, मगन माली, रामलाल खंडेलवाल एवं अन्य भक्तगणों द्वारा फल एवं प्रसाद की वितरण व्यवस्था की गई ।
पंचम दिन की कथा में प्रातः 9 बजे महेंद्र पाल सिंह, नरेंद्र पाल सिंह, राजेंद्र सिंह राठौड़ एवं अन्य भक्तो द्वारा सर्वकल्याण हेतु पूजा अर्चना, एवं लक्ष्मी, विष्णु यज्ञ में आहुतियां दी ।
दोपहर संत भाई संतोष सागर भागवत ने बताया की कथा देह तत्व का विषय नहीं, भागवत आत्मीय तत्व का विषय भागवत ज्ञान मन का विषय है जिसमे मन में भगवान का प्राकट्य होना आवश्यक है । भगवान प्राप्ति के लिए, मन में भाव, भक्ति एवं फिर सत्संग और सत्संग में भागवत सत्संग अति श्रेष्ठ है ।
“हरी अनंत हरी कथा अनंता” की व्याख्या करते हुए भगवान की कथा की अनंत गहराइयों के बारे में बताया ।
गंगा के तट पर सुखदेवजी राजा परीक्षित को भागवत के दसवें स्कंध की कथा का रसस्वादन करवाते हुए भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव में गोकुल के आनंद एवं गोपियों के मंगलगान के साथ नंदोत्सव के बारे में बताया । उत्सव में कंस द्वारा अपनी बहन को कृष्ण को मारने भेजा जहां पूतना को मार कर नंदलाल ने उसका उद्धार कर दिया ।
भाई संतोष सागर जी ने बताया की मां के गर्भ से जन्म होते ही व्यक्ति की मृत्यु की तिथि तय हो जाती है । मृत्यु एक शाश्वत सत्य है फिर भी मृत्यु से भय, निर्मल मन से भगवान की भक्ति से ही कल्याण का मार्ग प्राप्त होता है । भाई कथनी करनी एवं चिंतन के साथ चित्त की शुद्धि आवश्यक है ।
भाई संतोष सागर ने भागवत कथा में आगे भगवान कृष्ण के नामकरण के साथ अलग अलग बाल लीलाओं जिसमे गोपी चीर हरण लीला, माखन चोरी, ब्रह्मांड दर्शन लीला, गोवर्धन एवं गिरिराज लीला का विस्तार से वर्णन किया । भाई संतोष सागर ने बताया की व्यक्ति को क्रोध, मोह, माया, यश, अपयश, अहंकार त्याग कर अपने मन को ही वृंदावन बनाने का प्रयास करना चाहिए, जिसमे स्वयं भगवान स्वतः विराजमान हो ।
कथा में संत पागल बाबा, संत रामाज्ञा दास महाराज, भरूच गुजरात से पधारे ज्योतिषाचार्य आचार्य पंडित आशुतोष शास्त्री, नरेंद्र सिंह डाबी, राजेंद्र सिंह राठौड़, करण सिंह फौजी, बाबूलाल प्रजापत, भगवती लाल ओझा अंबालाल माली, ओंकार सिंह उदावत, रामचंद्र प्रजापत, सुनीता सिंह, उषा सिंह, महेंद्र पाल सिंह, नरेंद्र पाल सिंह, विजयपाल सिंह, सुरेंद्र त्रिवेदी, नटवरलाल अवस्थी सहित सैकड़ो भक्त जनों का सानिध्य एवं सहयोग रहा ।


संपादक भावेश आर्य