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सांसद चौधरी ने गौमाता के लिए तीन विधेयक किये पेश

स्वदेशी गौ और गौ-संतती संरक्षण बोर्ड 2024,
चारा भंडारण बोर्ड 2025,दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद लाभकारी मूल्य 2025 सांसद चौधरी ने लोकसभा में प्राइवेट मेम्बर बिल (विधेयक) किये पेश

दिल्ली,सिरोही 8 दिसम्बर।

जालोर सिरोही सांसद लुम्बाराम चौधरी ने लोकसभा में स्वदेशी गौ और गौ-संतती संरक्षण बोर्ड 2024,चारा भंडारण बोर्ड 2025,दुग्ध एवं दुग्ध उत्पाद लाभकारी मूल्य 2025 प्राइवेट मेम्बर बिल (विधेयक) पेश किए।
सांसद चौधरी ने लोकसभा में विधेयक बिल पेश करते हुए कहा कि गाय ग्रामीण भारतीय परिवारों का यह सबसे प्यारा-दुलारा पशु शताब्दियों से हमारी धर्म-संस्कृति और अर्थयवस्था का अभिन्न हिस्सा रहा। लेकिन इस समय भारत में जिस तेजी से देसी गायों की संख्या घट रही है, एक अनुमान के मुताबिक उससे आने वाले सिर्फ दस साल में हमारे आस-पास भारतीय गाय की आम मौजूदगी खत्म होने का खतरा पैदा हो गया है। पारंपरिक तौर पर भारत में गायों की विविध जातियां मौजूद हैं। एक ओर जहां सूखे दिनों में भी दूध देने वाली साहीवाल नस्ल की गाय है,वहीं अलग-अलग किस्म की ये गायें देश की ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही हैं। देशी गौदुग्ध को वैज्ञानिको ने सम्पूर्ण आहार माना है और पाया है।यदि मनुष्य केवल गाय के दूध का ही सेवन करता रहे तो उसका शरीर व जीवन न केवल सुचारू रूप से चलता रहेगा वरन् वह अन्य लोगों की अपेक्षा सशक्त और रोग प्रतिरोधक क्षमता से संपन्न हो जाएगा। मानव शरीर के लिए आवश्यक सभी पोषक तत्व इसमें होते हैं। देशी गाय के दूध में विटामिल ए-2 होता है जो कि कैंसरनाशक है। आयुर्वेद में गौमूत्र के ढेरों प्रयोग कहे गए हैं। देशी गाय के मूत्र को विषनाशक, रसायन, त्रिदोषनाशक माना गया है। गौमूत्र का रासायनिक विश्लेषण करने पर वैज्ञानिकों ने पाया, कि इसमें 24 ऐसे तत्व हैं जो शरीर के विभिन्न रोगों को ठीक करने की क्षमता रखते हैं।देसी गाय के दूध और घी में असाध्य रोगों से लड़ने की क्षमता होती है। देसी गाय के गोबर से जैविक खाद का निर्माण किया जाता हैं। देसी गाय के गोबर से बने खाद से जमीन की उर्वरा शक्ति बढती हैं। इस लिहाज से देश की अर्थव्यवस्था में देशी गायों की भूमिका से इनकार नहीं किया जा सकता है।चौधरी ने बताया कि 10.2 करोड़ टन वार्षिक दूध उत्पादन के साथ भारत दुनिया का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश है। फसल की तुलना में यह उत्पादन बहुत अधिक है और किसानों के लिए कमाई का एक अहम साधन भी है। मौसम की मार एवं फसलों की बर्बादी के बाद किसान को सुरक्षा देने में दुग्ध उत्पादन ने उल्लेखनीय भूमिका निभाई है। देश के कुछ क्षेत्रों में किसानों की आत्महत्या पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एम.एस.एस.ओ.) की रिपोर्ट के अनुसार उन क्षेत्रों में आत्महत्या की घटनाएं कम रही हैं, जहां दूध उत्पादन नियमित आय का साधन है। आज देश मे रोजगार प्रदान करने और आय के साधन पैदा करने में दुग्ध व्यवसाय की भूमिका अत्यन्त महत्त्वपूर्ण हो गई है। देश के करीब 7 करोड ग्रामीण परिवार दुग्ध व्यवसाय में लगे हुए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 70 प्रतिशत मवेशी छोटे, मझौले और सीमान्त किसानों के पास हैं, जिसकी पारिवारिक आमदनी का बहुत बडा हिस्सा दूध बेचने से प्राप्त होता है। दूध उत्पादन का कार्य ज्यादातर छोटे किसानों और भूमिहीनों द्वारा किया जाता है तथा इसमें महिलाओं की भूमिका प्रमुख है। दुग्ध उत्पादन व्यवसाय में कुछ खामिंया भी हैं जो इसकी उपलब्धियों पर पानी फेर देती हैं। पहली कमी तो दूध की कीमत है जिसका वास्तविक लाभ उसके हकदारों तक नहीं पहुंचता। जिस दूध की कीमत शहरों और महानगरों में 70 से 80 रूपए प्रति लीटर है, उसके लिए उत्पादकों को मात्र 30 से 40 रूपए प्रति लीटर ही मिलते हैं। दूध उत्पादकों को मिलने वाली 30-40 रूपए लीटर कीमत का एक बड़ा हिस्सा चारे व पशु आहार, बीमारी एवं पशुओं के रखरखाव आदि में खर्च हो जाता है। सदिर्यो के दिनो मे दूग्ध का उत्पाद ज्यादा होने पर सहकारी समितियॉ व डेयरी दूग्ध किसानो से अत्यधिक दूग्ध खरीदने से मना कर देती है। इस तरह दोनों ही पक्षों को मिलने वाला लाभ लगातार घटता जा रहा है, जिससे सकल प्रभाव प्रतिकूल हो जाता है। वही दूसरी तरफ आज डेयरी और पशुपालन के लिए लगातार जमीन की कमी , जलाशय, शेड निर्माण, दूध के प्रोसेसिंग की सुविधाओ की कमी , गोदाम, ट्रांसपोर्ट की बेहतर सुविधा न होना तथा दूध के मूल्यों में लगातार उतार-चढाव होने के कारण लधु मझौले किसानो को काफी परेशानियो का समाना करना पड रहा है। देश मे लगातार चारागाह की भूमि कम होने से पशुपालक को चारे की कमी हो रही है जिसके कारण कई डेयरी व्यवसायी व पशुपालक अपने धंधे मे रूची नही ले रहे है और अपना व्यवसाय बंद करने पर मजबूर हो रहे है।
चौधरी ने बताया कि अकाल,सूखा और बाढ जैसी प्राकृतिक आपदाओ के कारण पशुधन सहित मानव जीवन और संपति की भारी हानि होती हैं। लोगो के जीवन को प्राथमिकता दिए जाने के कारण पशुओ के जीवन को बचा पाना अत्यधिक कठिन हो जाता है ऐसी स्थितियों के दौरान पशुओ का जीवन बचाने के लिए पर्याप्त चारे की उपलब्धता मुख्य जरूरत बन जाती है। तथापि प्रभावित क्षेत्रो तक चारा और पीने का पानी का परिवहन आसान काम नही होता । अतः एक ऐसी प्रणाली विकसित किए जाने की आवश्यकता है जिससे प्राकृतिक आपदाओं से प्रभावित स्थानो पर चारा और पानी उपलब्ध हो सके ।
देश की जनसंख्या में वृद्वि के कारण कृषि भूमि का क्षेत्र कम होता जा रहा है।पारंपरिक फसलो के स्थान पर फसल की नई किस्मों की खेती के कारण भी चारे की उपलब्धता निरंतर कम हो रही हैं पशुओ के लिए चारे और पीने के पानी की कमी विशेषकर प्राकृतिक आपदाओ के दौरान का संज्ञान लेते हुए सरकार द्वारा हस्तेक्षप किए जाने और इसके कारण पूरे देश के ग्रामीण क्षेत्रो के लाखो किसानो और अन्य लोगो द्वारा सामना की जा रही समस्या का समाधान किए जाने की आवश्कता है।
प्राकृतिक आपदा के दौरान चारे और पीने की मांग का पूरा करने के लिए किसी अत्यावश्यक योजना के न होने के कारण पशुपालक अपने पशु मांस विक्रेताओ को औने पौने दाम में बेचने के लिए मजबूर हो जाते है जिसके कारण उन्हें मानसिक पीडा और भारी वितीय नुकसान उठाना पडता है।
इस प्रकार यह विधेयक चारे और पानी के उत्पादन प्रापण एकत्रण करने और प्राकृतिक आपदा प्रभवित स्थानो के लिए चारे और पानी के उत्पादन प्रापण एकत्रण करने और प्राकृतिक आपदा प्रभावित स्थानो में वितरण के लिए चारा बैंक की स्थापना का उपबंध कराने के लिए बिल पेश किया।

संपादक भावेश आर्य

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