पथ संचलन एवं शस्त्र पूजन के माध्यम से अनुशासन, राष्ट्रभक्ति एवं संस्कृति का दर्शन

वसुधैव कुटुंबकम का संस्कार देने वाली पारिवारिक व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना होगा – संजीव कुमार
सिरोही (हरिश देव) 6 अक्टूबर ।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्थापना के 100 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर शहर के देवश्वर बस्ती द्वारा पथ संचलन, विजयादशमी उत्सव एवं शस्त्र पूजन कार्यक्रम का आयोजन किया गया।पथ संचलन का शुभारंभ टांकरिया हनुमान मंदिर प्रांगण से टांकारिया की विभिन्न गलियों से होता हुआ छोटी ब्रह्मपुरी, मोदी लाइन, बड़ी ब्रह्मपुरी, आयुर्वैदिक हॉस्पिटल के बाहर से होता हुआ,, पुराने बस स्टैंड से होते हुए पुनः टांकरिया हनुमान मंदिर पर जाकर समापन हुआ। पथ संचलन में स्वयंसेवकों ने पूर्ण गणवेश में भाग लिया। स्वयं सेवको ने घोष वादन के साथ कदम से कदम मिलाते हुए अनुशासन, एकता और शक्ति का जीवंत प्रदर्शन किया।
घोष वादन के साथ पथ संचलन निकला तो माता बहनों ने जोश के साथ भारत माता की जय बोलते हुए जगह जगह पर पुष्प वर्षा की। संचलन मार्ग में विभिन्न स्थानों पर नागरिकों द्वारा स्वयंसेवकों पर पुष्पवर्षा कर स्वागत किया गया।
अतिथियों ने किया शस्त्र पूजन
कार्यक्रम की शुरुआत संघ परंपरा के अनुसार पवित्र भगवा ध्वज लगाकर पारंपरिक वैदिक मंत्रों के साथ शस्त्र पूजन सम्पन्न हुआ। आयोजन के मुख्य अतिथि कैलाश कँसारा एवं मुख्य वक्ता जालौर विभाग प्रचारक संजीव कुमार थे।
मुख्य वक्ता का उदबोधन
मुख्य वक्ता संजीव जी ने अपने प्रेरणादायक उद्बोधन में कहा कि आज शास्त्र के साथ शस्त्र का ज्ञान भी आवश्यक हो गया है। बिना शस्त्र के शास्त्र की रक्षा नहीं हो सकती और बिना शास्त्र के शस्त्र का कोई महत्व नहीं है। उन्होने कहा कि आज संघ के 100 वर्ष पूर्ण हुए हैं, लेकिन हिंदू समाज का अभी भी जातियों में बंटा होना समाज हित में नहीं है। मुगलों के बाद अंग्रेज आए, अंग्रेजों ने हमारे सामाजिक ताने-बाने को ध्वस्त किया। हमें अपने अंदर के दोषों को दूर करना होगा और शत्रु को पहचानना होगा। हमें वसुधैव कुटुंबकम का संस्कार देने वाली पारिवारिक व्यवस्था को पुनर्स्थापित करना चाहिए।
उन्होने संघ की कार्यपद्धति, राष्ट्र सेवा, व समाज निर्माण के महत्व के साथ साथ संघ के पंच परिवर्तन सामाजिक समरसता, कुटुंब प्रबोधन, स्वदेशी, नागरिक बोध ओर पर्यावरण के विषय पर विस्तार से बात की
उन्होंने कहा कि कुटुंब प्रबोधन कहने मात्र से नहीं आएगी, उसके लिए खुद से शुरुआत कर एक समय परिवार के साथ
भोजन करना होगा। उन्होने कहा कि भारतीय संस्कृति, परंपरा और देश-समाज से जुड़े विषयों पर चर्चा करें। सगे-संबंधियों की सुध लें, सप्ताह या महीने में एक दिन मित्रों-परिजनों से सपरिवार मिलें और साथ पर्व-त्योहार मनाए।


संपादक भावेश आर्य