राजपुरोहित समाज को दो नए सीए: सुरेश सिंह वण्दार और कुलदीप सिवना का प्रथम प्रयास में चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना समाज के लिए गौरव का क्षण

जालोर/सूरत(हरीश दवे) ।

शिक्षा, परिश्रम और समर्पण की मिसाल पेश करते हुए राजपुरोहित समाज के दो युवाओं ने प्रतिष्ठित चार्टर्ड अकाउंटेंट (CA) परीक्षा को प्रथम प्रयास में सफलतापूर्वक उत्तीर्ण कर समाज का नाम रोशन किया हैं। गांव वण्दार निवासी सुरेशसिंह बद्रीसिंहजी और गांव सिवना (जालोर) निवासी, हाल सूरत निवासी कुलदीप अशोकजी राजपुरोहित ने यह उपलब्धि हासिल कर यह साबित कर दिया कि प्रतिबद्धता और मेहनत से कोई भी लक्ष्य दूर नहीं होता।
यह सफलता न केवल व्यक्तिगत गौरव का विषय हैं, बल्कि पूरे राजपुरोहित समाज और विशेषकर ग्रामीण पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के लिए प्रेरणा का स्रोत हैं। इन दोनों युवाओं ने यह दिखा दिया हैं कि सीमित संसाधनों के बावजूद यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो देश की सर्वोच्च व्यवसायिक परीक्षाओं को भी साधा जा सकता हैं।
राजपुरोहित समाज के कई वरिष्ठों, शिक्षकों, व्यवसायियों और सामाजिक संगठनों ने दोनों नवसीए को हार्दिक बधाई देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की हैं। समाज के प्रबुद्धजनों का मानना हैं कि आज जब देश आर्थिक सुधार, कर सुधार और कॉर्पोरेट पारदर्शिता की दिशा में आगे बढ़ रहा हैं, ऐसे में राजपुरोहित समाज के युवाओं का चार्टर्ड अकाउंटेंसी जैसे क्षेत्रों में आना समाज की बौद्धिक और आर्थिक शक्ति को मज़बूत करेगा।
सीए कुलदीप और सुरेशसिंह की सफलता आने वाले युवाओं के लिए यह संदेश हैं कि गांव हो या शहर, आज शिक्षा के दरवाज़े सबके लिए खुले हैं — जरूरत हैं तो केवल आत्मविश्वास, मार्गदर्शन और निरंतर अभ्यास की।
व्यवसाय जगत में भूमिका: दोनों नव-सीए अब विभिन्न क्षेत्रों में अपने ज्ञान और अनुभव से उद्योगों, व्यापारिक प्रतिष्ठानों और करदाताओं को मार्गदर्शन देंगे। इनकी विशेषज्ञता न केवल प्रोफेशनल दुनिया में बल्कि समाज की सेवा में भी योगदान देगी — जैसे ग्रामीण युवाओं को आर्थिक साक्षरता सिखाना, स्टार्टअप्स को कर परामर्श देना और पारिवारिक व्यवसायों को संगठित रूप में आगे बढ़ाना।
इस अवसर पर राजपुरोहित समाज की ओर से एक सम्मान समारोह आयोजित किए जाने की योजना पर भी विचार चल रहा हैं ताकि अन्य युवाओं को भी प्रोत्साहन मिल सके और ‘सीए बनने का सपना’ दूर न लगे।
राजपुरोहित समाज को इन दोनों रत्नों पर गर्व हैं — जिन्होंने यह साबित कर दिया कि प्रतिभा जन्म से नहीं, बल्कि संघर्ष से निखरती हैं।

संपादक भावेश आर्य