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बाल विवाह एक सामाजिक बुराई के विरुद्ध हमारी सामूहिक लड़ाई डॉ. रविन्द्र मिश्रा’


सिरोही 28 अप्रेल (हरीश दवे) ।

राष्ट्रीय मानवाधिकार एवम् महिला बाल विकास आयोग के मुख्य महासचिव डॉ. रविन्द्र मिश्रा ने अक्षय तृतीया से पूर्व राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र विभिन्न प्रदेशों के जिला पदाधिकारियों के साथ वर्चुअल बैठक की व बाल विवाह को समाज के लिए अभिशाप मानते हुए आखातीज के दिन होने वाले बाल विवाहों की रोकथाम मंे आयोग के सदस्यों को सजग रहने के साथ हर जिले में राज्य सरकार व जिला प्रशासन के ध्यान में लाकर कार्यवाही करने की बात कहीं व सदस्यों को आव्हान किया कि बाल विवाह की रोकथाम के लिए समाज को जागरूक करे।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एवम् महिला बाल विकास आयोग के मुख्य महासचिव डॉ. रविन्द्र मिश्रा ने कहां कि भारत, जो अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और सामाजिक मूल्यों के लिए विश्वभर में प्रसिद्ध है, आज भी कुछ जटिल सामाजिक बुराइयों से संघर्ष कर रहा है। इनमें से एक अत्यंत गंभीर समस्या है ’बाल विवाह’। बाल विवाह न केवल एक बच्चे का बचपन छीन लेता है, बल्कि उसके स्वास्थ्य, शिक्षा, और सम्पूर्ण विकास पर भी प्रतिकूल प्रभाव डालता है। रार्ष्ट्री मानवाधिकार एवम् महिला बाल विकास आयोग इस गंभीर मुद्दे को जड़ से समाप्त करने हेतु संकल्पित है।
बाल विवाह न केवल भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के भी विपरीत है। बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य, और सुरक्षित बचपन का अधिकार प्राप्त है। परंतु जब उन्हें समय से पूर्व विवाह के बंधन में बाँध दिया जाता है, तो यह अधिकार उनसे छीन लिया जाता है।
हालांकि भारत सरकार और विभिन्न राज्य सरकारों द्वारा कठोर कानून बनाए गए हैं, फिर भी ग्रामीण अंचलों, पिछड़े इलाकों और कुछ पारंपरिक समाजों में बाल विवाह के मामलों की संख्या चिंताजनक बनी हुई है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (छथ्भ्ै) के अनुसार, भारत में आज भी 18 वर्ष से कम उम्र की लगभग 23ः लड़कियाँ और 21 वर्ष से कम उम्र के लगभग 17 प्रतिशत लड़के विवाह बंधन में बंधते हैं।
यह आंकड़े उस सामाजिक असमानता और जागरूकता की कमी को दर्शाते हैं, जो अभी भी हमारे देश में व्याप्त है। उन्होने बताया कि ’शैक्षणिक बाधाएँ’ बाल विवाह के कारण लड़कियाँ और लड़के स्कूल छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं। इससे उनके करियर के अवसर सीमित हो जाते हैं और वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं बन पाते।
’स्वास्थ्य सम्बन्धी खतरे’ किशोरावस्था में गर्भधारण से माँ और शिशु दोनों के जीवन पर खतरा बढ़ जाता है। बालिकाओं में प्रसव के दौरान मृत्यु दर और कुपोषण की दर अधिक होती है तथा ’मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव’ कम उम्र में विवाह करने से मानसिक दबाव, अवसाद और घरेलू हिंसा के मामलों में बढ़ोत्तरी देखी जाती है। साथ ही ’आर्थिक अस्थिरता’ शिक्षा की कमी और व्यस्क मानसिक परिपक्वता के अभाव में बाल विवाह से जुड़े परिवार आर्थिक कठिनाइयों का सामना करते हैं एवं ’सामाजिक विकास में रुकावटरू’ जब एक बड़ी आबादी बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं से जकड़ी हो, तो समग्र सामाजिक और राष्ट्रीय विकास प्रभावित होता है।
बैठक में उन्होने बाल विवाह के रोकथाम व उसके कानूनो की जानकारी देते हुए यह भी बताया कि ’पॉक्सो अधिनियम, 2012रू’ 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के खिलाफ किसी भी प्रकार के यौन अपराधों के लिए कठोर सजा निर्धारित की गई है।
आयोग के सिरोही जिला महासचिव हरीश दवे ने बैठक में शामिल होने के बाद जानकारी लेते हुए बताया कि डॉ. रविन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में राष्ट्रय मानवाधिकार एवम् महिला बाल विकास आयोग ने बाल विवाह के विरुद्ध व्यापक जनजागरण अभियान शुरू किया है। हमारा उद्देश्य है।
’ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में जागरूकता फैलाना, ’स्कूलों और महाविद्यालयों में विशेष कार्यशालाओं का आयोजन करना, ’पंचायती राज संस्थाओं को सशक्त कर बाल विवाह को रोकने में सहयोग लेना, ’समाजसेवी संस्थाओं, प्रशासन, और पुलिस विभाग के साथ तालमेल बढ़ाना, ’पीड़ित बालिकाओं और बालकों को पुनर्वास सहायता प्रदान करन, ’कानूनी सहायता और परामर्श सेवा देना, हमारा मानना है कि केवल कानून बनाने से परिवर्तन नहीं आएगा, जब तक कि समाज की मानसिकता में परिवर्तन नहीं लाया जाए। हम, मानवाधिकार एवम् महिला बाल विकास आयोग, सरकार, नागरिक समाज, मीडिया, और आम जनता से अपील करते हैं कि ’शिक्षा को हर बच्चे का अधिकार समझकर उसे अनिवार्य बनाया जाए।’, ’समुदायों में बाल विवाह के दुष्परिणामों पर चर्चा हो।’, ’ग्रामीण क्षेत्रों में महिला पंचायतों और युवा समूहों को सशक्त बनाया जाए।’, ’समय-समय पर बाल विवाह विरोधी अभियानों का संचालन हो।’, ’पीड़ित बच्चों को पुनर्वास एवं मानसिक परामर्श उपलब्ध कराया जाए।’, ’हर व्यक्ति समाज के प्रहरी के रूप में कार्य करे। यदि कहीं बाल विवाह की सूचना मिले, तो तुरंत संबंधित अधिकारियों को सूचित करें।’, बाल विवाह को समाप्त करना केवल एक कानूनी दायित्व नहीं है, बल्कि यह ’हमारी नैतिक जिम्मेदारी’ है। हर बच्चा एक उज्ज्वल भविष्य का अधिकारी है कृ उसे समयपूर्व जिम्मेदारियों के बोझ से मुक्त रखना हम सबका कर्तव्य है। आइए हम सब मिलकर यह संकल्प लें कि भारत को बाल विवाह मुक्त बनाकर अपने बच्चों को सुरक्षित, शिक्षित और सम्मानजनक जीवन प्रदान करें। ’रार्ष्ट्रीय मानवाधिकार एवम् महिला बाल विकास आयोग ’ डॉ. रविन्द्र मिश्रा के मार्गदर्शन में इस दिशा में अपना पूर्ण प्रयास कर रहा है और करता रहेगा।

संपादक भावेश आर्य

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