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कुंठा रहित मन व ईर्ष्या रहित व्यवहार से ही मोक्ष व भगवत प्राप्ति:-भाई संतोष सागर

सिरोही(हरीश दवे)।

देव नगरी में चल रही श्री मद भागवत कथा का दिव्य श्रवण कर भक्त जन आनन्दित हो रहे है।वही कथा वाचक भाई संतोष सागर जी महाराज के दिव्य मुखारविन्द से भागवत कथा में”नानी बाई रो मायरो”सुन श्रोता आनन्द में तल्लीन हो झूम उठे।। प्रथमेश गार्डन में चल रही मदभागवत के व्यास पीठ के समक्ष चौथे दिन प्रातकाल 9:00 बजे सर्व कल्याण के लिए विष्णु सहस्त्रनाम एवं महालक्ष्मी यज्ञ मुख्य यजमान महेंद्र पाल सिंह, नरेंद्र पाल सिंह एवं डाक्टर जगदीश शर्मा द्वारा पूजा अर्चना की गई ।

पूर्व संध्या पर पूज्य भाई संतोष सागर जी महाराज द्वारा मारवाड़ी में नानी बाई रो मायरो की अद्भुत कथा प्रारंभ हुई रात्रि 7:30 बजे से 10:45 बजे तक देवनागरी के भक्तों ने अपार उत्साह के साथ नानी बाई रो मायरो का आनंद लिया । नरसी मेहता के जन्म से ही मूकबधिर होने एवं बाद में हरि नाम संकीर्तन के विषय में पूज्य संत ने विस्तार से बताया ।

चतुर्थ दिवस की भागवत कथा दोपहर 1:00 बजे पूज्य भाई संतोष सागर ने बताया
“एक घड़ी आधी घड़ी और आधी में पुनि आध, तुलसी संगत साधु की, कटे कोटि अपराध”
भगवान सुखदेव जी से राजा परीक्षित गंगा घाट पर आभूषण, राजसी वस्त्र, एवं भोजन त्याग कर वलकल वस्त्र धारण कर संध्या वंदन कर भागवत का श्रवण कर रहे है । मन के सभी मैल लोभ, मोह, माया एवं क्रोध को त्याग कर ही परम मोक्ष को पाया जा सकता है।

नरक से कैसे बचे एवं “प्रिय बैकुंठ दर्शनम” जिसमे कुंठा रहित मन और ईर्ष्या रहित व्यवहार जो करे उसे निश्चित बैकुंठ को प्राप्त होता है ।

अजामिल एवं ऋषि पाराशर की कथा सुनाई । गणिका पुत्र नारायण के नाम स्मरण से स्वर्ग लोक की प्राप्ति हुई । अजा का अर्थ है इंद्री और इन्द्रियों एवं मन को वश में करने का एकमात्र उपाय संयम ही है और इन्द्रियों को वश में करने मन पर नियंत्रण से हो मोहन की प्राप्ति हो सकती है ।
“नाम संकीर्तनम् यशम”
इंद्र के ब्रह्म हत्या के पाप से मुक्ति मार्ग ब्रह्मा ने बताया की
इंद्र की वृतियों का नाश संत और सज्जन की कृपा से ही संभव है हुआ। इंद्र की एक हजार साल की तपस्या के बाद ऋषि दधीचि की हड्डियों से भगवान विश्वकर्मा शस्त्र बनाए जिससे वृतासुर का नाश हुआ । भाई संतोष सागर ने बताया क्रोध से बुद्धि का नाश होता है और बुद्धि से पुण्यों का नाश होता है ।
जब संत मिलन हो जाए, तेरी वाणी हरी गुण गए तब इतना समझ लेना अब हरी से मिलन होगा ।

संत ने हिरणाकश्यप एवं भक्त प्रह्लाद की कथा सुनाते हुए माता कयादु भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी जो प्रह्लाद को भक्ति मार्ग पर ले गई । प्रह्लाद ने भगवान प्राप्त के नो मार्ग बताए ।
श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम्। अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥ श्रवण (परीक्षित), कीर्तन (शुकदेव), स्मरण (प्रह्लाद), पादसेवन (लक्ष्मी), अर्चन (पृथुराजा), वंदन (अक्रूर), दास्य (हनुमान), सख्य (अर्जुन) और आत्मनिवेदन (बलि राजा) – इन्हें नवधा भक्ति कहते हैं।

कृष्ण एवं बलराम जन्म की अद्भुत झांकी से पूरी कथा पंडाल में आनंद एवं नृत्य का माहौल हो गया ।
पूज्य भाई संतोष सागर जी ने शांडिल्य मुनि के आशीर्वाद कंस के कारागृह में कृष्ण एवं नंद बाबा के घर योगमाया के जन्म का वृतांत विस्तार से बताया ।

कथा में संत पागल बाबा, संत रामाज्ञा दास जी महाराज, डॉ जगदीश शर्मा, भगवती लाल ओझा, ओंकार सिंह उदावत, राजेंद्र सिंह राठौड़, अंबालाल माली, सुनील गुप्ता, जगदीश सिंह गुर्जर, शंकर लाल माली, नरेंद्र अग्रवाल, राजबाला गुर्जर, नीलम सिंह, आराधना गुप्ता, गायत्री शर्मा, विक्रम सिंह यादव, बाबूलाल प्रजापत, राजेंद्र सिंह राठौड़, सहित अनेक भक्तों का सानिध्य एवं सहयोग रहा ।

संपादक भावेश आर्य

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